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Sep 21, 2012

प्रोजेक्ट - सोसाइटी चेंजिकरण बनाम घर शिफ्टिंग ( पार्ट -2)

धारावाहिक उपन्यास 
(This post is not meant to hurt the sentiments of any particular community and is just a light hearted attempt to share my experience)
इस किस्त का पूरा मजा लेने के लिए पहले पार्ट -1 (साउथ इंडियन अंकल और लुंगी वाले गाँधीजी) पढें। 
बुड्ढे का फिलैट और धूप बत्ती 

अंकल जी ने घर के बीचों  बीच में  बनाये गए ड्राइंग  कम डाइनिंग रूम में खड़े हो के हमें उस घर की  लोकेशन के फाएदे गिनाने  शुरू किये। आगे की तरफ पड़ने वाली मार्केट और पीछे की तरफ पड़ने वाला हॉस्पिटल अंकल जी के हिसाब से उस घर का सबसे बड़ा यू एस पी था। उन्होंने हमें अपने साथ बिल्डिंग की छत पे चलने को कहा जहा से से इन यू एस पीज़ की एक्चुअल क्लोजनेस का वेरिफिकेशन किया जा सकता था। मार्केट  से भी ज्यादा वो इस बात पे जोर दे रहे थे कि  हम चाहें  तो घर की पिछली तरफ स्थित उस फाईव स्टार जैसे दिखते हॉस्पिटल का सुबह शाम चक्कर लगा सकते हैं। वो भी 5 मिनट से कम समय में। उनके हिसाब से ये एक बहुत बड़ी सुविधा थी। मुझे अचानक से झुरझुरी  होने लगी और पिछले महीने अपनी अक्लदाढ़ के माइनर ओपरेशन के वक़्त सर के उपर  जलता हुआ बड़ा सा हेलोजन बल्ब और मुह में मास्क लगाया हुआ डाक्टर याद आया। जो उस बल्ब की रौशनी में किसी यमराज से कम नहीं लग रहा था। मेरे माथे पे पसीने की बूंदे झलक आई और मैंने पति को लगभग खीचते  हुए छत से नीचे चलने का इशारा किया। अंकल जी बिना किसी कौमा , फुलस्टॉप के अपने कौनवरसेशन के तहत बिल्डिंग के नजदीक बने हुए कई सारे स्कूल दिखाने लगे पर फिर हमारे साथ कोई बच्चा न देख के उन्होंने इस पे ज्यादा फ़ोकस  नहीं मारा और ठीक बाजू वाले प्लाट पे उगे  बड़े से पीपल के पेड़ और उस के छन कर आती हवा को थोड़ी कम इम्पोर्टेंस का, पर एक और यू एस पी बताया। इस के बाद  पीपल से छन के आती हवा के स्वास्थ्य लाभ गिनाये गए। अपने मकान के इतने सारे फायदे गिनाते गिनाते अंकल जी रोमांच की चरम सीमा पर पहुँच गए और कांटीन्यूअस बोलने के कारण उनकी सांस उखड गयी। जहाँ पति के एक हाथ को में नीचे ले जाने के लिए खींच रही थी वहीं  दूसरे हाथ को अंकल जी ने सहारे के लिए पकड़ रखा था. " यु नो दिस पीफल पेयुरिफाइड विंड " वो चुप होने को तैयार नहीं थे और दम घुटने से उनकी मौत भी हो सकती थी। उनकी अंडे जैसे आँखें बाहर  निकल के गिरने को तैयार थी। एक बार को मुझे लगा पांच मिनट में  हॉस्पिटल पहुँचने वाले स्टेटमेंट की औथेंटीसिटी चेक करने का मौका आ गया था पर अंकल जी की हालत देख के मैने रवि को आवाज मारी। वो भागता हुए उपर आया और पति से बोला "सर जी जरा हाथ लगाना। कित्ती बार बोला है इनको की मेरा काम है मुझे करने दो। पर जे मानें तब न। अबी  कुछ हो हुआ जाता तो मेरी तो हो जाती न ऐसी तैसी। इनका क्या .. इनका भूत तो लटक लेता हेयीं इस पीपल पे और हुईं से ताकते रैता अपने फिलैट को। मेरी तो मार्किट रेपुटेशन ख़राब हो जाती ना ". मैंने महसूस  किया की दिलबहार की खुशबू का एफेक्ट थोडा कम हो गया था।

अंकल जी को पानी पिलाया और बाकि बातें फ़ोन पे करने का वादा करते हुए हम ने इज़ाज़त मांगी। अन्कल जी ने टूटती  उखड्ती साँसों के बीच जाते जाते और 15- 20 मिनट हमसे बातें की, जिसमें ये बताया  गया की वो उस ज़माने के इंजिनीअर हैं जब इंजिनीअर बनना उतना की कठिन था जितना की फिल्मो में हीरो बनना। और ये भी की चेन्नई के उनके पुश्तैनी घर का सारा इलेक्ट्रिफिकेशन उन्होंने उतनी सी उम्र मैं किया था जब बच्चे पैंट में पोट्टी करके धोना भी नहीं जानते। यु नो इंजिनीअर माँइंड। उन्होने अन्दर के दराज़ से निकाल के रजनीकान्त के साथ खिचवाया गया अपना फोटो भी दिखाया। उनका ये मानना था की उनमें और  रजनीकांत मैं काफी समानताएं थी। दोनों पर ही उम्र अपना असर नहीं दिखा पाई है। ये अलग बात है की रजनीकांत की किस्मत थोडा ज्यादा तेज़ निकली और वो हीरो बन के चमक गया। अदरवाइज़ टेलेंट की इनमें भी कोई कमी न थी। ये भी की कैसे उनके इंजिनियर माइंड ने बालकोनी मैं एक नल की यूटिलिटी को पहले ही समझ के उस एरिया में  टाइल्स लगवा दी थी ताकि दिवालो का पेंट न झडे और जाते जाते मेरा हाथ पकड़ के लगभग घिसटते हुए वो बाथरूम में  ले गए जहाँ  शावर के उपर बने एक छोटे से छेद को दिखाया जिसमें उनके हिसाब से एक गिट्टी ठोक के एक फैन फिट किया जाना था ताकि नहाते नहाते आप का शरीर सूखता भी रहे। ये उनके हिसाब से उनके इंजिनीअर माँइंड में आया आज तक का सबसे "झिनटैक" आइडिया था पर उन्होंने ये भी कहा की इस एक्स्क्लूसिव फैसिलिटी के एवज में वो रेंट में  कुछ एक्स्ट्रा ऐक्स्पैक्ट नहीं कर रहे थे। गिट्टी के लिए छोडे गए उस छेद को दिखाने के लिए उन्होंने अपने गले में लटकी एक सुतली में पिरोये गये  मिनी टॉर्च का इस्तेमाल किया जिसकी लाइट को जलाने के लिए उसे दो तीन बार हवा में जोर से झटकना पड़ता था। अंकल जी का ये टॉर्च भी उतना ही प्रागैतिहासिक लग रहा था जितना की अंकल जी खुद थे।

उनके चंगुल से छूटने की असफल कोशिश करते हुए हम दोनों ने आलमोस्ट भागने जैसी मुद्रा बना ली और पति तेज़ तेज़  चलते हुए अपने जूतो के पास पहुँच गए जो दरवाज़े पे खोले गए थे। अंकल जी टौर्च वाली सुतली को बंडी  के अन्दर डालते हुए जब तक हमारे पास पहुँचते हम आलमोस्ट लिफ्ट के अन्दर जा चुके थे। 0 का बटन दबाने और लिफ्ट के दरवाज़े बंद होने के बीच के समय में अंकल जी  ने पूरी ताकत लगा के जोर से कहा की नोन्वेज़ और पेट्स अलाउड नहीं हैं पर क्युकी हम अच्छे लोग हैं वो अंडे खाने की इज़ाज़त दे देंगे। और साथ ही यह भी की हमारे फ़ोन का इंतजार करेंगे। लिफ्ट के बंद होते दरवाज़े के बीच से जोर जोर से साथ हिलाते अंकल जी  नज़र आ रहे थे और और उनकी अंडे जैसे ऑंखें जिनमें हमने एक अच्छे किरायेदार को पाने की इच्छा को बलवती होते देखा था।

ग्राउंड फ्लोर पे आते ही रवि ने एक बार फिर "ख्वाक्क" की उस विलक्षण आवाज़ के साथ बचे खुचे दिलबहार फ्लेवर्ड थूक को गार्डेन एरिया में विसर्जित किया और सर खुजाता हुआ बुदबुदाया " ऐसे तो लग गया बुढ़ढ़े  का   मकान किराये पे, बस धुप बत्ती करते करते ही मर जागा ये तो ". मैंने और पति ने एक दुसरे का मुहं  देखा और इस मिस्वेंचर पे मुस्कुरा दिए। "चलो सर जी मैं बताता हूं आपको फिर फ़ोन पे। एक दो और भी हैं फ्लैट"
वो समझ चुका था हमारे दिमाग में क्या चल रहा था।


धारावाहिक उपन्यास प्रोजेक्ट - सोसाएटी चेंजिकरण  बनाम "घर शिफ्टिंग" की आगे की किस्तों में बाकि घटनाओ को समेटने को कोशिश रहेगी . बने रहिएगा और अपने कमेंट्स जरूर शेयर करें।

शुभ रात्रि 
Kaivi

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2 comments:

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